मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन अब इस दुनिया में नहीं रहे काफी दिनों से बीमार चल रहे लालजी टंडन को जून के पहले सप्ताह में ही लखनऊ के एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था
लालजी टंडन प्रारंभ से ही संघ में शामिल थे और 1960 के दशक में वह राजनीति में आए थे इसके बाद वह कई बार कई प्रतिष्ठित पदों पर रहते हुए बिहार के राज्यपाल भी बने
बिहार के बाद जुलाई 2019 में वह मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी बने फिर उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद जब वह लखनऊ अस्पताल में भर्ती हो गए तो मध्य प्रदेश का कार्यभार आनंदीबेन पटेल को दिया गया
लालजी टंडन को उत्तर प्रदेश का काफी कद्दावर नेता माना जाता है और वह प्रारंभ से ही भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे उनके चले जाने से भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व हानि हुई
मंगलवार सुबह उनके बेटे आशुतोष ने इस बात की पुष्टि की. लालजी टंडन कई दिनों से बीमार थे, अस्पताल में भर्ती थे यही कारण था कि मध्य प्रदेश के राज्यपाल का कार्यभार आनंदीबेन पटेल को सौंप दिया गया था. अब उनके निधन के बाद कई बड़े नेता श्रद्धांजलि दे रहे हैं, लालजी टंडन के निधन के बाद यूपी में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालजी टंडन के निधन पर दुख व्यक्त किया. पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि लालजी टंडन को उनकी समाज सेवा के लिए याद किया जाएगा. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में मजबूत बनाने में अहम रोल निभाया, वह जनता की भलाई के लिए काम करने वाले नेता थे. पीएम मोदी ने लिखा कि लालजी टंडन को कानूनी मामलों की भी अच्छी जानकारी रही और अटलजी के साथ उन्होंने लंबा वक्त बिताया. मैं उनके प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूं
लालजी टंडन की मृत्यु पर प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी द्वारा ट्वीट करके श्रद्धांजलि अर्पित किया साथ ही मायावती और राजनाथ सिंह जैसे कई राजनेताओं ने भी ट्विटर के जरिए श्रद्धांजलि अर्पित की मायावती लालजी टंडन को अपना बड़ा भाई मानते थे अगले इमेज में देखिए मायावती और राजनाथ सिंह का ट्वीट
लालजी टंडन की मृत्यु के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में साथ ही पूरे देश की राजनीति में शोक की लहर दौड़ गई है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी सरकार ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक सूचना जारी करके उत्तर प्रदेश में 3 दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया है नीचे फोटो में उत्तर प्रदेश राज्य की शोक की नोटिस
मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का लखनऊ के एक निजी अस्पताल में आकस्मिक निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। तबियत खराब होने के बाद उन्हें 11 जून को मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें सांस की दिक्कत, पेशाब में परेशानी और बुखार था । चिकित्सकों ने उनका सी.टी गाइडेड प्रोसीजर किया था लेकिन उनके पेट में रक्तस्राव हो गया।
साथ ही फेफड़े, किडनी और लीवर में दिक्कत बढ़ने पर वेंटीलेटर पर रखा गया लेकिन चिकित्सकों के अथक प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। मंगलवार सुबह उन्होंने 5.35 पर अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु की जानकारी उनके ज्येष्ठ पुत्र और प्रदेश सरकार में मंत्री आशुतोष टंडन गोपाल ने ट्वीट कर दी ।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लखनऊ से सांसद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा अध्यक्ष मायावती और पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित अनेक लोगों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है साथ ही उनसे जुड़े संस्मरणों का साझा किया है।
शुरुआत से ही संघ के स्वयंसेवक
टंडन का जन्म 12 अप्रैल, 1935 को हुआ था। अपने शुरुआती जीवन में ही लालजी टंडन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे।
उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक पढ़ाई के बाद यहीं पर एलएलबी में दाखिला लिया। पढ़ाई भी की लेकिन कुछ विशेष परिस्थिति ऐसी बनी कि वे परीक्षा नहीं दे सके। परिवार की पृष्ठभूमि व्यापारिक होने के कारण उन्होंने भी स्वाभाविक रूप से व्यापार का रास्ता चुना लेकिन शायद यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव और सामाजिक कामों के प्रति उनका लगाव था जो उन्हें राजनीति के संसार में भी घसीट लाया।
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60 के दशक से शुरू हुआ चुनावी राजनीति का सफर
सभासद के चुनाव में 60 के दशक से उनका चुनावी राजनीति का सफर शुरू हुआ । कांग्रेस के महेशनाथ शर्मा सभासद थे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद चुनाव में जनसंघ ने टंडन को उम्मीदवार बनाया। वह दो बार सभासद चुने गए साथ ही जनसंघ सभासद दल के नेता भी रहे। दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे। भाजपा के विभिन्न पदों पर पदाधिकारी रहे टंडन ने प्रवक्ता की भी जिम्मेदारी संभाली।
प्रदेश सरकार में तीन बार मंत्री रहे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में लखनऊ संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन कांग्रेस के पक्ष में चल रही सहानुभूति लहर के सामने जीत नहीं सके। पर, लखनऊ लोकसभा से उन्हें सफलता व जीत 2009 में अटल बिहारी वाजपेयी की जगह भाजपा का प्रत्याशी बनने पर हासिल हुई और लोकप्रियता भी साबित कर दी।
वैसे टंडन 1996 से 2009 तक लखनऊ पश्चिम से लगातार विधायक रहे। उन्होंने विधानपरिषद में नेता सदन की भी जिम्मेदारी संभाली तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का भी निर्वाह किया।
ऐसे आगे बढ़ा सफर
सभासद के बाद 1978 से 1984 तक और 1990 से 96 तक दो बार विधानपरिषद के सदस्य रहे। इस दौरान 1991-92 की उत्तर प्रदेश सरकार में वह मंत्री भी रहे। इसी सरकार में अयोध्या मामले का प्रभारी मंत्री भी बनाया गया। इसके बाद 1996 से 2007 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे ।
उन्होंने प्रदेश में नगर विकास मंत्री, आवास और ऊर्जा मंत्री की भूमिका का भी निर्वाह किया। वर्ष 2009 में वह अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लोकसभा चुनाव लड़कर सांसद बने । उन्हें साल 2018 में बिहार के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। फिर उन्हें मध्य प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया।
उनके बड़े पुत्र आशुतोष टंडन इस प्रदेश सरकार में नगर विकास मंत्री हैं।
ये है संयोगों का दुर्योग
लालजी टंडन की मृत्यु के साथ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एक दुर्योग की कहानी भी रच गई। टंडन प्रदेश के ऐसे तीसरे राजनेता रहे जिनकी मध्य प्रदेश का राज्यपाल रहते मृत्यु हुई है। टंडन से पहले भाजपा नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त वह शख्स थे जिनकी मध्य प्रदेश का राज्यपाल रहते बीमारी से मृत्यु हुई थी।
कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे रामनरेश यादव को मध्य प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। रामनरेश यादव भी बीमार हुए और उनकी राज्यपाल रहते मृत्यु हो गई। लालजी टंडन मुख्यमंत्री तो नहीं रहे लेकिन हैसियत इनकी भी मुख्यमंत्री जैसी ही थी।
मध्य प्रदेश का राज्यपाल रहते टंडन भी बीमार हुए और मृत्यु हो गई। यह भी मात्र नियति का एक योग ही है कि ये तीनों व्यक्ति किसी न किसी रूप में आपातकाल के संघर्ष और उसके बाद 1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार से जुड़े थे। जहां रामनरेश यादव उस सरकार के मुख्यमंत्री, रामप्रकाश गुप्त उस सरकार में उद्योग मंत्री थे और जनसंघ के चेहरा थे। लालजी टंडन ने इसी सरकार में विधानपरिषद के जरिये विधानमंडल की यात्रा शुरू की थी।
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